37. सूरह अस-सफ्फात Surah As-Saaffat


﴾ 1 ﴿ शपथ है पंक्तिवध्द (फ़रिश्तों) की!

﴾ 2 ﴿ फिर झिड़कियाँ देने वालों की!

﴾ 3 ﴿ फिर स्मरण करके पढ़ने वालों[1] की!
1. यह तीनों गुण फ़रिश्तों के हैं जो आकाशों में अल्लाह की इबादत के लिये पंक्तिवध्द रहते तथा बादलों को हाँकते और अल्लाह के स्मरण जैसे क़ुर्आन तथा नमाज़ पढ़ने और उस की पवित्रता का गान करने इत्यादि में लगे रहते हैं।

﴾ 4 ﴿ निश्चय तुम्हारा पूज्य, एक ही है।

﴾ 5 ﴿ आकाशों तथा धरती का पालनहार तथा जो कुछ उनके मध्य है और सुर्योदय होने के स्थानों का रब।

﴾ 6 ﴿ हमने अलंकृत किया है संसार (समीप) के आकाश को, तारों की शोभा से।

﴾ 7 ﴿ तथा रक्षा करने के लिए प्रत्येक उध्दत शैतान से।

﴾ 8 ﴿ वह नहीं सुन सकते (जाकर) उच्च सभा तक फ़रिश्तों की बात तथा मारे जाते हैं, प्रत्येक दिशा से।

﴾ 9 ﴿ राँदने के लिए तथा उनके लिए स्थायी यातना है।

﴾ 10 ﴿ परन्तु, जो ले उड़े कुछ, तो पीछा करती है उसका दहकती ज्वाला।[1]
1. फिर यदि उस से बचा रह जाये तो आकाश की बात अपने नीचे के शैतानों तक पहूँचाता है और वह उसे काहिनों तथा ज्योतिषियों को बताते हैं। फिर वह उस में सौ झूठ मिला कर लोगों को बताते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः 6213, सह़ीह़ मुस्लिमः2228)

﴾ 11 ﴿ तो आप इन (काफ़िरों) से प्रश्न करें कि क्या उन्हें पैदा करना अधिक कठिन है या जिन्हें[1] हमने पैदा किया है? हमने उन्हें[2] पैदा किया है, लेसदार मिट्टी से।
1. अर्थात फ़रिश्तों तथा आकाशों को। 2. उन के पिता आदम (अलैहिस्सलाम) को।

﴾ 12 ﴿ बल्कि आपने आश्चर्य किया (उनके अस्वीकार पर) तथा वे उपहास करते हैं।

﴾ 13 ﴿ और जब शिक्षा दी जाये, तो वे शिक्षा ग्रहण नहीं करते।

﴾ 14 ﴿ और जब देखते हैं कोई निशानी, तो उपहास करने लगते हैं।

﴾ 15 ﴿ तथा कहते हें कि ये तो मात्र खुला जादू है।

﴾ 16 ﴿ (कहते हैं कि) क्या, जब हम मर जायेंगे तथा मिट्टी और हड्डियाँ हो जायेंगे, तो हम निश्चय पुनः जीवित किये जायेंगे?

﴾ 17 ﴿ और क्या, हमारे पहले पूर्वज भी (जीवित किये जायेंगे)?

﴾ 18 ﴿ आप कह दें कि हाँ तथा तुम अपमानित (भी) होगे!

﴾ 19 ﴿ वो तो बस एक झिड़की होगी, फिर सहसा वे देख रहे होंगे।

﴾ 20 ﴿ तथा कहेंगेः हाय हमारा विनाश! ये तो बदले (प्रलय) का दिन है।

﴾ 21 ﴿ यही निर्णय का दिन है, जिसे तुम झुठला रहे थे।

﴾ 22 ﴿ (आदेश होगा कि) घेर लाओ सब अत्याचारियों को तथा उनके साथियों को और जिसकी वे इबादत (वंदना) कर रहे थे।

﴾ 23 ﴿ अल्लाह के सिवा। फिर दिखा दो उन्हें नरक की राह।

﴾ 24 ﴿ और उन्हें रोक[1] लो। उनसे प्रश्न किया जाये।
1. नरक में झोंकने से पहले।

﴾ 25 ﴿ क्या हो गया है तुम्हें कि एक-दूसरे की सहायता नहीं करते?

﴾ 26 ﴿ बल्कि वे उस दिन, सिर झुकाये खड़े होंगे।

﴾ 27 ﴿ और एक-दूसरे के सम्मुख होकर परस्पर प्रश्न करेंगेः[1]
1. अर्थात एक-दूसरे को धिक्कारेंगे।

﴾ 28 ﴿ कहेंगे कि तुम हमारे पास आया करते थे दायें[1] से।
1. इस से अभिप्राय यह है कि धर्म तथा सत्य के नाम से आते थे अर्थात यह विश्वास दिलाते थे कि यही मिश्रणवाद मूल तथा सत्धर्म है।

﴾ 29 ﴿ वे[1] कहेंगेः बल्कि तुम स्वयं ईमान वाले न थे।
1. इस से अभिप्राय उन के प्रमुख लोग हैं।

﴾ 30 ﴿ तथा नहीं था हमारा तुमपर कोई अधिकार,[1] बल्कि तुम सवंय अवज्ञाकारी थे।
1. देखियेः सूरह इब्राहीम, आयतः22

﴾ 31 ﴿ तो सिध्द हो गया हमपर हमारे पालनहार का कथन कि हम (यातना) चखने वाले हैं।

﴾ 32 ﴿ तो हमने तुम्हें कुपथ कर दिया। हम तो स्वयं कुपथ थे।

﴾ 33 ﴿ फिर वे सभी, उस दिन यातना में साझी होंगे।

﴾ 34 ﴿ हम, इसी प्रकार, किया करते हैं अपराधियों के साथ।

﴾ 35 ﴿ ये वो हैं कि जब कहा जाता था उनसे कि कोई पूज्य (वंदनीय) नहीं अल्लाह के अतिरिक्त, तो वे अभिमान करते थे।

﴾ 36 ﴿ तथा कह रहे थेः क्या हम त्याग देने वाले हैं अपने पूज्यों को, एक उन्मत कवि के कारण?

﴾ 37 ﴿ बल्कि वह (नबी) सच लाये हैं तथा पुष्टि की है, सब रसूलों की।

﴾ 38 ﴿ निश्चय तुम दुःखदायी यातना चखने वाले हो।

﴾ 39 ﴿ तथा तुम उसका प्रतिकार (बदला) दिये जाओगे, जो तुम कर रहे थे।

﴾ 40 ﴿ परन्तु अल्लाह के शुध्द भक्त।

﴾ 41 ﴿ यही हैं, जिनके लिए विदित जीविका है।

﴾ 42 ﴿ प्रत्येक प्रकार के फल तथा यही आदरणीय होंगे।

﴾ 43 ﴿ सुख के स्वर्गों में।

﴾ 44 ﴿ आसनों पर एक-दूसरे के सम्मुख असीन होंगे।

﴾ 45 ﴿ फिराये जायेंगे इनपर प्याले, प्रवाहित पेय के।

﴾ 46 ﴿ श्वेत आस्वात पीने वालों के लिए।

﴾ 47 ﴿ नहीं होगी उसमें शारिरिक पीड़ा, न वे उसमें बहकेंगे।

﴾ 48 ﴿ तथा उनके पास आँखे झुकाये, (सति) बड़ी आँखों वाली (नारियाँ) होंगी।

﴾ 49 ﴿ वह छुपाये हुए अन्डों के मानिन्द होंगी।[1]
1. अर्थात जिस प्रकार पक्षी के पंखों के नीचे छुपे हुये अन्डे सुरक्षित होते हैं वैसे ही वह नारियाँ सुरक्षित, सुन्दर रंग और रूप की होंगी।

﴾ 50 ﴿ वह एक-दूसरे से सम्मुख होकर प्रश्न करेंगे।

﴾ 51 ﴿ तो कहेगा एक कहने वाला उनमें सेः मेरा एक साथी था।

﴾ 52 ﴿ जो कहता था कि क्या तुम (प्रलय का) विश्वास करने वालों में से हो?

﴾ 53 ﴿ क्या जब हम, मर जायेंगे तथा मिट्टी और अस्थियाँ हो जायेंगे, तो क्या हमें (कर्मों) का प्रतिफल दिया जायेगा?

﴾ 54 ﴿ वह कहेगाः क्या तुम झाँककर देखने वाले हो?

﴾ 55 ﴿ फिर झाँकते ही उसे देख लेगा, नरक के बीच।

﴾ 56 ﴿ उससे कहेगाः अल्लाह की शपथ! तुम तो मेरा विनाश कर देने के समीप थे।

﴾ 57 ﴿ और यदि मेरे पालनहार का अनुग्रह न होता, तो मैं (नरक के) उपस्थितों में होता।

﴾ 58 ﴿ फिर वह कहेगाः क्या (ये सही नहीं है कि) हम मरने वाले नहीं हैं?

﴾ 59 ﴿ सिवाय अपनी प्रथम मौत के और न हमें यातना दी जायेगी।

﴾ 60 ﴿ वास्तव में, यही बड़ी सफलता है।

﴾ 61 ﴿ इसी (जैसी सफलता) के लिए चाहिये कि कर्म करें, कर्म करने वाले।

﴾ 62 ﴿ क्या ये आतिथ्य उत्तम है अथवा थोहड़ का वृक्ष?

﴾ 63 ﴿ हमने उसे अत्याचारियों के लिए एक परीक्षा बनाया है।

﴾ 64 ﴿ वह एक वृक्ष है, जो नरक की जड़ (तह) से निकलता है।

﴾ 65 ﴿ उसके गुच्छे शैतानों के सिरों के समान हैं।

﴾ 66 ﴿ तो वे (नरक वासी) खाने वाले हैं, उससे। फिर भरने वाले हैं, उससे अपने पेट।

﴾ 67 ﴿ फिर उनके लिए उसके ऊपर से खौलता गरम पानी है।

﴾ 68 ﴿ फिर उन्हें प्रत्यागत होना है, नरक की ओर।

﴾ 69 ﴿ वास्तव में, उन्होंने पाया अपने पूर्वजों को कुपथ।

﴾ 70 ﴿ फिर वे उन्हीं के पद्चिन्हों पर[1] दौड़े चले जा रहे हैं।
1. इस में नरक में जाने का जो सब से बड़ा कारण बताया गया है वह है नबी को न मानना, और अपने पूर्वजों के पंथ पर ही चलते रहना।

﴾ 71 ﴿ और कुपथ हो चुके हैं, इनसे पूर्व अगले लोगों में से अधिक्तर।

﴾ 72 ﴿ तथा हम भेज चुके हैं उनमें, सचेत (सावधान) करने वाले।

﴾ 73 ﴿ तो देखो कि कैसा रहा सावधान किये हुए लोगों का परिणाम?[1]
1. अतः उन के दुष्परिणाम से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये।

﴾ 74 ﴿ हमारे शुध्द भक्तों के सिवा।

﴾ 75 ﴿ तथा हमें पुकारा नूह़ नेः तो हम क्या ही अच्छे प्रार्थना स्वीकार करने वाले हैं।

﴾ 76 ﴿ और हमने बचा लिया उसे और उसके परिजनों को, घोर आपदा से।

﴾ 77 ﴿ तथा कर दिया हमने उसकी संतति को, शेष[1] रह जाने वालों में से।
1. उस की जाति के जलमग्न हो जाने के पश्चात्।

﴾ 78 ﴿ तथा शेष रखा हमने उसकी सराहना तथा प्रशंसा को पिछलों में।

﴾ 79 ﴿ सलाम (सुरक्षा)[1] है नूह़ के लिए समस्त विश्ववासियों में।
1. अर्थात उस की बुरी चर्चा से।

﴾ 80 ﴿ इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।

﴾ 81 ﴿ वास्तव में, वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।

﴾ 82 ﴿ फिर हमने जलमगन कर दिया दूसरों को।

﴾ 83 ﴿ और उसके अनुयायियों में निश्चय इब्राहीम है।

﴾ 84 ﴿ जब लाया वह अपने पालनहार के पास स्वच्छ दिल।

﴾ 85 ﴿ जब कहा उसने अपने पिता तथा अपनी जाति सेः तुम किसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो?

﴾ 86 ﴿ क्या अपने बनाये हुए पूज्यों को अल्लाह के सिवा चाहते हो?

﴾ 87 ﴿ तो तुम्हारा क्या विचार है, विश्व के पालनहार के विषय में?

﴾ 88 ﴿ फिर उसने देखा तोरों की[1] ओर।
1. यह सोचते हुये कि इन के उत्सव में न जाने के लिये क्या बहाना करूँ।

﴾ 89 ﴿ तथा उनसे कहाः मैं रोगी हूँ।

﴾ 90 ﴿ तो उसे छोड़कर चले गये।

﴾ 91 ﴿ फिर वह जा पहुँचा, उनके उपास्यों (पूज्यों) की ओर। कहा कि (वे प्रसाद) क्यों नहीं खाते?

﴾ 92 ﴿ तुम्हें क्या हुआ है कि बोलते नहीं?

﴾ 93 ﴿ फिर पिल पड़ा उनपर मारते हुए, दायें हाथ से।

﴾ 94 ﴿ तो वे आये उसकी ओर दौड़ते हुए।

﴾ 95 ﴿ इब्राहीम ने कहाः क्या तुम इबादत (वंदना) करते हो उसकी जिसे, पत्थरों से तराश्ते हो?

﴾ 96 ﴿ जबकि अल्लाह ने पैदा किया है तुम्हें तथा जो तुम करते हो।

﴾ 97 ﴿ उन्होंने कहाः इसके लिए एक (अग्निशाला का) निर्माण करो और उसे झोंक दो दहकती अग्नि में।

﴾ 98 ﴿ तो उन्होंने उसके साथ षड्यंत्र रचा, तो हमने उन्हीं को नीचा कर दिया।

﴾ 99 ﴿ तथा उसने कहाः मैं जाने वाला हूँ अपने पालनहार की[1] ओर। वह मुझे सुपथ दर्शायेगा।
1. अर्थात ऐसे स्थान की ओर जहाँ अपने पालनहार की इबादत कर सकूँ।

﴾ 100 ﴿ हे मेरे पालनहार! प्रदान कर मुझे, एक सदाचारी (पुनीत) पुत्र।

﴾ 101 ﴿ तो हमने शुभ सूचना दी उसे, एक सहनशील पुत्र की।

﴾ 102 ﴿ फिर जब वह पहुँचा उसके साथ चलने-फिरने की आयु को, तो इब्राहीम ने कहाः हे मेरे प्रिय पुत्र! मैं देख रहा हूँ स्वप्न में कि मैं तुझे वध कर रहा हूँ। अब, तू बता कि तेरा क्या विचार है? उसने कहाः हे पिता! पालन करें, जिसका आदेश आपको दिया जा रहा है। आप पायेंगे मुझे सहनशीलों में से, यदि अल्लाह की इच्छा हूई।

﴾ 103 ﴿ अन्ततः, जब दोनों ने स्वयं को अर्पित कर दिया और उस (पिता) ने उसे गिरा दिया माथे के बल।

﴾ 104 ﴿ तब हमने उसे आवाज़ दी कि हे इब्राहीम!

﴾ 105 ﴿ तूने सच कर दिया अपना स्वप्न। इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।

﴾ 106 ﴿ वास्तव में, ये खुली परीक्षा थी।

﴾ 107 ﴿ और हमने उसके मुक्ति-प्रतिदान के रूप में, प्रदान कर दी एक महान[1] बली।
1. यह महान बलि एक मेंढा था। जिसे जिब्रील (अलाहिस्सलाम) द्वारा स्वर्ग से भेजा गया। जो आप के प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) के स्थान पर बलि दिया गया। फिर इस विधि को प्रलय तक के लिये अल्लाह के सामिप्य का एक साधन तथा ईदुल अज़्ह़ा (बक़रईद) का प्रियवर कर्म बना दिया गया। जिसे संसार के सभी मुसलमान ईदुल अज़्ह़ा में करते हैं।

﴾ 108 ﴿ तथा हमने शेष रखी उसकी शुभ चर्चा पिछलों में।

﴾ 109 ﴿ सलाम है इब्रीम पर।

﴾ 110 ﴿ इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।

﴾ 111 ﴿ निश्चय ही वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।

﴾ 112 ﴿ तथा हमने उसे शुभसूचना दी इस्ह़ाक़ नबी की, जो सदाचारियों में[1] होगा।
1. इस आयत से विद्वत होता है कि इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को इस बलि के पश्चात् दूसरे पुत्र आदरणीय इस्ह़ाक़ की शुभ सूचना दी गई। इस से ज्ञान हुआ की बलि इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की दी गई थी। और दोनों की आयु में लग-लग चौदह वर्ष का अन्तर है।

﴾ 113 ﴿ तथा हमने बरकत (विभूति) अवतरिक की उसपर तथा इस्ह़ाक़ पर और उन दोनों की संतति में से कोई सदाचारी है और कोई अपने लिए खुला अत्याचारी।

﴾ 114 ﴿ तथा हमने उपकार किया मूसा और हारून पर।

﴾ 115 ﴿ तथा मुक्त किया दोनों को और उनकी जाति को, घोर व्यग्रता से।

﴾ 116 ﴿ तथा हमने सहायता की उनकी, तो वही प्रभावशाली हो गये।

﴾ 117 ﴿ तथा हमने प्रदान की दोनों को प्रकाशमय पुस्तक (तौरात)।

﴾ 118 ﴿ और हमने दर्शाई दोनों को सीधी डगर।

﴾ 119 ﴿ तथा शेष रखी दोनों की शुभ चर्चा, पिछलों में।

﴾ 120 ﴿ सलाम है मूसा तथा हारून पर।

﴾ 121 ﴿ हम इसी प्रकार प्रतिफल प्रदान करते हैं, सदाचारियों को।

﴾ 122 ﴿ वस्तुतः, वे दोनों हमारे ईमान वाले भक्तों में थे।

﴾ 123 ﴿ तथा निश्चय इल्यास, नबियों में से था।

﴾ 124 ﴿ जब कहा उसने अपनी जाति सेः क्या तुम डरते नहीं हो?

﴾ 125 ﴿ क्या तुम बअल ( नामक मूर्ति) को पुकारते हो? तथा त्याग रहे हो सर्वोत्तम उत्पत्तिकर्ता को?

﴾ 126 ﴿ अल्लाह ही तुम्हारा पालनहार है तथा तुम्हारे प्रथम पूर्वजों का पालनहार है।

﴾ 127 ﴿ अन्ततः, उन्होंने झुठला दिया उसे। तो निश्चय वही (नरक में) उपस्थित होंगे।

﴾ 128 ﴿ किन्तु, अल्लाह के शुध्द भक्त।

﴾ 129 ﴿ तथा शेष रखी हमने उसकी शुभ चर्चा पिछलों में।

﴾ 130 ﴿ सलाम है इल्यासीन[1] पर।
1. इल्यासीन इल्यास ही का एक उच्चारण है। उन्हें अन्य धर्म ग्रन्थों में इलया भी कहा गया है।

﴾ 131 ﴿ वास्तव में, हम इसी प्रकार प्रतिफल प्रदान करते हैं, सदाचारियों को।

﴾ 132 ﴿ वस्तुतः, वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।

﴾ 133 ﴿ तथा निश्चय लूत नबियों में से था।

﴾ 134 ﴿ जब हमने मुक्त किया उसे तथा उसके सबपरिजनों को।

﴾ 135 ﴿ एक बुढ़िया[1] के सिवा, जो पीछे रह जाने वालों में थी।
1. यह लूत (अलैहिस्सलाम) की काफ़िर पत्नि थी।

﴾ 136 ﴿ फिर हमने अन्यों को तहस-नहस कर दिया।

﴾ 137 ﴿ तथा तुम[1] ग़ुज़रते हो उन (की निर्जीव बस्तियों) पर, प्रातः के समय।
1. मक्का वासियों को संबोधित किया गया है।

﴾ 138 ﴿ तथा रात्रि में। तो क्या तुम समझते नहीं हो?

﴾ 139 ﴿ तथा निश्चय यूनुस नबियों में से था।

﴾ 140 ﴿ जब वह भाग[1] गया भरी नाव की ओर।
1. अल्लाह की अनुमति के बिना अपने नगर से नगर वासियों को यातना के आन की सूचना दे कर निकल गये। और नाव पर सवार हो गये। नाव सागर की लहरों में घिर गई। इस लिये बोझ कम करने के लिये नाम निकाला गया। तो यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम निकला और उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया।

﴾ 141 ﴿ फिर नाम निकाला गया, तो वह हो गया फेंके हुओं में से।

﴾ 142 ﴿ तो निगल लिया उसे मछली ने और वह निन्दित था।

﴾ 143 ﴿ तो यदि न होता अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करने वालों में।

﴾ 144 ﴿ तो वह रह जाता उसके उदर में उस दिन तक, जब सब पुनः जीवित किये[1] जायेंगे।
1. अर्थात प्रयल के दिन तक। (देखियेः सूरह अम्बिया, आयतः87)

﴾ 145 ﴿ तो हमने फेंक दिया उसे खुले मैदान में और वह रोगी[1] था।
1. अर्थात निर्बल नवजात शिशु के समान।

﴾ 146 ﴿ और उगा दिया उस[1] पर लताओं का एक वृक्ष।
1. रक्षा के लिये।

﴾ 147 ﴿ तथा हमने उसे रसूल बनाकर भेजा एक लाख, बल्कि अधिक की ओर।

﴾ 148 ﴿ तो वे ईमान लाये। फिर हमने उन्हें सुख-सुविधा प्रदान की एक समय[1] तक।
1. देखियेः सूरह यूनुस।

﴾ 149 ﴿ तो (हे नबी!) आप उनसे प्रश्न करें कि क्या आपके पालनहार के लिए तो पुत्रियाँ हों और उनके लिए पुत्र?

﴾ 150 ﴿ अथवा किया हमने पैदा किया है फ़रिश्तों को नारियाँ और वे उस समय उपस्थित[1] थे?
1. इस में मक्का के मिश्रणवादियों का खण्डन किया जा रहा है जो फ़रिश्तों को देवियाँ तथा अल्लाह की पुत्रियाँ कहते थे। जब कि वह स्वयं पुत्रियों के जन्म को अप्रिय मानते थे।

﴾ 151 ﴿ सावधान! वास्तव में, वे अपने मन से बनाकर ये बात कह रहे हैं।

﴾ 152 ﴿ कि अल्लाह ने संतान बनाई है और निश्चय ये मिथ्या भाषी हैं।

﴾ 153 ﴿ क्या अल्लाह ने प्राथमिक्ता दी है पुत्रियों को, पुत्रों पर?

﴾ 154 ﴿ तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसा निर्णय दे रहे हो?

﴾ 155 ﴿ तो क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?

﴾ 156 ﴿ अथवा तुम्हारे पास कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है?

﴾ 157 ﴿ तो अपनी पुस्तक लाओ, यदि तुम सत्यवादी हो?

﴾ 158 ﴿ और उन्होंने बना दिया अल्लाह तथा जिन्नों के मध्य, वंश-संबंध। जबकि जिन्न स्वयं जानते हैं कि वे अल्लाह के समक्ष निश्चय उपस्थित किये[1] जायेंगे।
1. अर्थात यातना के लिये। तो यदि वे उस के संबंधी होते तो उन्हें यातना क्यों देता?

﴾ 159 ﴿ अल्लाह पवित्र है उन गुणों से, जिनका वे वर्णन कर रहे हैं।

﴾ 160 ﴿ परन्तु, अल्लाह के शुध्द भक्त।[1]
1. वह अल्लाह को ऐसे दुर्गुणों से युक्त नहीं करते।

﴾ 161 ﴿ तो निश्चय तुम तथा तुम्हारे पूज्य।

﴾ 162 ﴿ तुम सब किसी एक को भी कुपथ नहीं कर सकते।

﴾ 163 ﴿ उसके सिवा, जो नरक में झोंका जाने वाला है।

﴾ 164 ﴿ और नहीं है हम (फ़रिश्तों) में से कोई, परन्तु उसका एक नियमित स्थान है।

﴾ 165 ﴿ तथा हम ही (आज्ञापालन के लिए) पंक्तिवध्द हैं।

﴾ 166 ﴿ और हम ही तस्बीह़ (पवित्रता गान) करने वाले हैं।

﴾ 167 ﴿ तथा वे (मुश्रिक) तो कहा करते थे किः

﴾ 168 ﴿ यदि हमारे पास कोई स्मृति (पुस्तक) होती, जो पहले लोगों में आई……

﴾ 169 ﴿ तो हम अवश्य अल्लाह के शुध्द भक्तों में हो जाते।

﴾ 170 ﴿ (फिर जब आ गयी) तो उन्होंने क़ुर्आन के साथ कुफ़्र कर दिया, अतः, शीघ्र ही उन्हें ज्ञान हो जायेगा।

﴾ 171 ﴿ और पहले ही हमारा वचन हो चुका है अपने भेजे हुए भक्तों के लिए।

﴾ 172 ﴿ कि निश्चय उन्हीं की सहायता की जायेगी।

﴾ 173 ﴿ तथा वास्तव में हमारी सेना ही प्रभावशाली (विजयी) होने वाली है।

﴾ 174 ﴿ तो आप मुँह फेर लें उनसे, कुछ समय तक।

﴾ 175 ﴿ तथा उन्हें देखते रहें। वे भी शीघ्र ही देख लेंगे।

﴾ 176 ﴿ तो क्या, वे हमारी यातना की शीघ्र माँग कर रहे हैं।

﴾ 177 ﴿ तो जब वह उतर आयेगी उनके मैदानों में, तो बुरा हो जायेगा सावधान किये हुओं का सवेरा।

﴾ 178 ﴿ और आप मुँह फेर लें उनसे, कुछ समय तक।

﴾ 179 ﴿ तथा देखते रहें, अन्ततः वे (भी) देख लेंगे।

﴾ 180 ﴿ पवित्र है आपका पालनहार, गौरव का स्वामी, उस बात से, जो वे बना रहे हैं।

﴾ 181 ﴿ तथा सलाम है रसूलों पर।

﴾ 182 ﴿ तथा सभी प्रशंसा, अल्लाह, सर्वलोक के पालनहार के लिए है।

कुरान - कुरान की मान्यताएँ (Quran in Hindi)

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