54. सूरह अल-कमर Surah Al-Qamar


﴾ 1 ﴿ समीप आ गयी[1] प्रलय तथा दो खण्ड हो गया चाँद।
1. आप (सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम) से मक्का वासियों ने माँग की कि आप कोई चमत्कार दिखायें। अतः आप ने चाँद को दो भाग होते उन्हें दिखा दिया। (बुख़ारीः 4867) आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद कहते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के युग में चाँद दो खण्ड हो गयाः एक खण्ड पर्वत के ऊपर और दूसरा उस के नीचे। और आप ने कहाः तुम सभी गवाह रहो। (सह़ीह़ बुख़ारीः4864)

﴾ 2 ﴿ और यदि वे देखते हैं कोई निशानी, तो मुँह फेर लेते हैं और कहते हैं: ये तो जादू है, जो होता रहा है।

﴾ 3 ﴿ और उन्होंने झुठलाया और अनुसरण किया अपनी आकांक्षाओं का और प्रत्येक कार्य का एक निश्चित समय है।

﴾ 4 ﴿ और निश्चय आ चुके हैं उनके पास कुछ ऐसे समाचार, जिनमें चेतावनी है।

﴾ 5 ﴿ ये (क़ुर्आन) पूर्णतः तत्वदर्शिता (ज्ञान) है, फिर भी नहीं काम आयी उनके, चेतावनियाँ।

﴾ 6 ﴿ तो आप विमुख हो जायें उनसे, जिस दिन पुकारने वाला पुकारेगा एक अप्रिय चीज़ की[1] ओर।
1. अर्थात प्रयल के दिन ह़िसाब के लिये।

﴾ 7 ﴿ झुकी होंगी उनकी आँखें। वे निकल रहे होंगे समाधियों से, जैसे कि वे टिड्डी दल हों बिखरे हुए।

﴾ 8 ﴿ तो उसने प्रार्थना की अपने पालनहार से कि मैं विवश हूँ, अतः, मेरा बदला ले ले।

﴾ 9 ﴿ झुठलाया इनसे पहले नूह़ की जाति ने। तो झुठलाया उन्होंने हमारे भक्त को और कहा कि पागल है और (उसे) झड़का गया।

﴾ 10 ﴿ तो उसने प्रार्थना की अपने पालनहार से कि मैं विवश हूँ, अतः मेरा बदला ले ले।

﴾ 11 ﴿ तो हमने खोल दिये आकाश के द्वार धारा प्रवाह जल के साथ।

﴾ 12 ﴿ तथा फाड़ दिये धरती के स्रोत, तो मिल गया (आकाश और धरती का) जल उस कार्य के अनुसार जो निश्चित किया गया।

﴾ 13 ﴿ और सवार कर दिया हमने उसे (नूह़ को) तख़्तों तथा कीलों वाली (नाव) पर।

﴾ 14 ﴿ जो चल रही थी हमारी रक्षा में, उसका बदला लेने के लिए, जिसके साथ कुफ़्र किया गया था।

﴾ 15 ﴿ और हमने छोड़ दिया इसे एक शिक्षा बनाकर। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?

﴾ 16 ﴿ फिर (देख लो!) कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?

﴾ 17 ﴿ और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?

﴾ 18 ﴿ झुठलाया आद ने, तो कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?

﴾ 19 ﴿ हमने भेज दी उनपर कड़ी आँधी, एक निरन्तर अशुभ दिन में।

﴾ 20 ﴿ जो उखाड़ रही थी लोगों को, जैसे वे खजूर के खोखले तने हों।

﴾ 21 ﴿ तो कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?

﴾ 22 ﴿ और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?

﴾ 23 ﴿ झुठला दिया समूद[1] ने चेतावनियों को।
1. यह सालेह (अलैहिस्सलाम) की जाति थी। उन्हों ने उन से चमत्कार की माँग की तो अल्लाह ने पर्वत से एक ऊँटनी निकाल दी। फिर भी वह ईमान नहीं लाये। क्यों कि उन के विचार से अल्लाह का रसूल कोई मनुष्य नहीं फ़रिश्ता होना चाहिये था। जैसा कि मक्का के मुश्रिकों का विचार था।

﴾ 24 ﴿ और कहाः क्या अपने ही में से एक मनुष्य का हम अनुसरण करें? वास्तव में, तब तो हम निश्चय बड़े कुपथ तथा पागलपन में हैं।

﴾ 25 ﴿ क्या उतारी गयी है शिक्षा उसीपर हमारे बीच में से? (नहीं) बल्कि वह बड़ा झूठा अहंकारी है।

﴾ 26 ﴿ उन्हें कल ही ज्ञान हो जायेगा कि कौन बड़ा झूठा अहंकारी है?

﴾ 27 ﴿ वास्तव में, हम भेजने वाले हैं ऊँटनी उनकी परीक्षा के लिए। अतः, (हे सालेह!) तुम उनके (परिणाम की) प्रतीक्षा करो तथा धैर्य रखो।

﴾ 28 ﴿ और उन्हें सूचित कर दो कि जल विभाजित होगा उनके बीच और प्रत्येक अपनी बारी के दिन[1] उपस्थित होगा।
1. अर्थात एक दिन जल स्रोत का पानी ऊँटनी पियेगी और एक दिन तुम सब।

﴾ 29 ﴿ तो उन्होंने पुकारा अपने साथी को। तो उसने आक्रमण किया और उसे वध कर दिया।

﴾ 30 ﴿ फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरी चेतावनियाँ?

﴾ 31 ﴿ हमने भेज दी उनपर कर्कश ध्वनि, तो वे हो गये बाड़ा बनाने वाले की रौंदी हुई बाढ़ के समान (चूर-चूर)।

﴾ 32 ﴿ और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?

﴾ 33 ﴿ झुठला दिया लूत की जाति ने चेतावनियों को।

﴾ 34 ﴿ तो हमने भेज दिये उनपर पत्थर लूत के परिजनों के सिवा, हमने उन्हें बचा लिया रात्रि के पिछले पहर।

﴾ 35 ﴿ अपने विशेष अनुग्रह से। इसी प्रकार हम बदला देते हैं उसको जो कृतज्ञ हो।

﴾ 36 ﴿ और निःसंदेह, लूत ने सावधान किया उनको हमारी पकड़ से। परन्तु, उन्होंने संदेह किया चेतावनियों के विषय में।

﴾ 37 ﴿ और बहलाना चाहा उस (लूत) को उसके अतिथियों[1] से तो हमने अंधी कर दी उनकी आँखें कि चखो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियों (का परिणाम)।
1. अर्थात उन्हों ने अपने दुराचार के लिये फ़रिश्तों को जो सुन्दर युवकों के रूप में आये थे, उन को लूत (अलैहिस्सलाम) से अपने सुपुर्द करने की माँग की।

﴾ 38 ﴿ और उनपर आ पहुँची प्रातः भोर ही में स्थायी यातना।

﴾ 39 ﴿ तो चखो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ।

﴾ 40 ﴿ और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?

﴾ 41 ﴿ तथा फ़िरऔनियों के पास भी चेतावनियाँ आयीं।

﴾ 42 ﴿ उन्होंने झुठलाया हमारी प्रत्येक निशानी को तो हमने पकड़ लिया उन्हें अति प्रभावी आधिपति के पकड़ने के समान।

﴾ 43 ﴿ (हे मक्का वासियों!) क्या तुम्हारे काफ़िर उत्तम हैं उनसे अथवा तुम्हारी मुक्ति लिखी हुई है आकाशीय पुस्तकों में?

﴾ 44 ﴿ अथवा वे कहते हैं कि हम विजेता समूह हैं।

﴾ 45 ﴿ शीध्र ही प्राजित कर दिया जायेगा ये समूह और वे पीठ दिखा[1] देंगे।
1. इस में मक्का के काफ़िरों की पराजय की भविष्यवाणी है जो बद्र के युध्द में पूरी हुई। ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बद्र के दिन एक ख़ेमे में अल्लाह से प्रार्थना कर रहे थे। फिर यही आयत पढ़ते हुये निकले। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4875)

﴾ 46 ﴿ बल्कि प्रलय उनके वचन का समय है तथा प्रलय अधिक कड़ी और तीखी है।

﴾ 47 ﴿ वस्तुतः, ये पापी, कुपथ तथा अग्नि में हैं।

﴾ 48 ﴿ जिस दिन वे घसीटे जायेंगे यातना में अपने मुखों के बल (उनसे कहा जायेगा कि) चखो नरक की यातना का स्वाद।

﴾ 49 ﴿ निश्चय हमने प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न किया है एक अनुमान से।

﴾ 50 ﴿ और हमारा आदेश बस एक ही बार होता है आँख झपकने के समान।[1]
1. अर्थात प्रलय होने में देर नहीं होगी। अल्लाह का आदेश होते ही तत्क्षण प्रलय आ जायेगी।

﴾ 51 ﴿ और हम ध्वस्त कर चुके हैं तुम्हारे जैसे बहुत-से समुदायों को।

﴾ 52 ﴿ जो कुछ उन्होंने किया है कर्मपत्र में है।[1]
1. जिसे उन फ़रिश्तों ने जो दायें तथा बायें रहते हैं लिख रखा है।

﴾ 53 ﴿ और प्रत्येक तुच्छ तथा बड़ी बात अंकित है।

﴾ 54 ﴿ वस्तुतः, सदाचारी लोग स्वर्गों तथा नहरों में होंगे।

﴾ 55 ﴿ सत्य के स्थान में, अति सामर्थ्यवान स्वामी के पास।

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