88. सूरह अल-घाशिया Surah Al-Ghashiyah


﴾ 1 ﴿ क्या तेरे पास पूरी सृष्टी पर छा जाने वाली (क्यामत) का समाचार आया?

﴾ 2 ﴿ उस दिन कितने मूँह सहमे होंगे।

﴾ 3 ﴿ परिश्रम करते थके जा रहे होंगे।

﴾ 4 ﴿ पर वे दहकती आग में जायेंगे।

﴾ 5 ﴿ उन्हें खोलते सोते का जल पिलाया जायेगा।

﴾ 6 ﴿ उनके लिए कटीली झाड़ के सिवा, कोई भोजन सामग्री नहीं होगी।

﴾ 7 ﴿ जो न मोटा करेगी और न भूख दूर करेगी।[1]
1. (1-7) इन आयतों में प्रथम संसारिक स्वार्थ में मग्न इन्सानों को एक प्रश्न द्वारा सावधान किया गया है कि उसे उस समय की सूचना है जब एक आपदा समस्त विश्व पर छा जायेगा? फिर इसी के साथ यह विवरण भी दिया गया है कि उस समय इन्सानों के दो भेद हो जायेंगे, और दोनों के प्रतिफल भी भिन्न होंगेः एक नरक में तथा दूसरा स्वर्ग में जायेगा। तीसरी आयत में “नासिबह” का शब्द आया है जिस का अर्थ है, थक कर चूर हो जाना, अर्थात काफ़िरों को क़्यामत के दिन इतनी कड़ी यातना दी जायेगी कि उन की दशा बहुत ख़राब हो जायेगी। और वे थके-थके से दिखाई देंगे। इस का दूसरा अर्थ यह भी है कि उन्हों ने संसार में बहुत से कर्म किये होंगे परन्तु वह सत्य धर्म के अनुसार नहीं होंगे, इस लिये वे पूजा अर्चना और कड़ी तपस्या कर के भी नरक में जायेंगे, इस लिये कि सत्य आस्था के बिना कोई कर्म मान्य नहीं होगा।

﴾ 8 ﴿ कितने मुख उस दिन निर्मल होंगे।

﴾ 9 ﴿ अपने प्रयास से प्रसन्न होंगे।

﴾ 10 ﴿ ऊँचे स्वर्ग में होंगे।

﴾ 11 ﴿ उसमें कोई बकवास नहीं सुनेंगे।

﴾ 12 ﴿ उसमें बहता जल स्रोत होगा।

﴾ 13 ﴿ और उसमें ऊँचे-ऊँचे सिंहासन होंगे।

﴾ 14 ﴿ उसमें बहुत सारे प्याले रखे होंगे।

﴾ 15 ﴿ पंक्तियों में गलीचे लगे होंगे।

﴾ 16 ﴿ और मख़्मली क़ालीनें बिछी होंगी।[1]
1. (8-16) इन आयतों में जो इस संसार में सत्य आस्था के साथ क़ुर्आन आदेशानुसार जीवन व्यतीत कर रहे हैं परलोक में उन के सदा के सुख का दृश्य दिखाया गया है।

﴾ 17 ﴿ क्या वह ऊँटों को नहीं देखते कि कैसे पैदा किये गये हैं?

﴾ 18 ﴿ और आकाश को कि किस प्रकार ऊँचा किया गया?

﴾ 19 ﴿ और पर्वतों को कि कैसे गाड़े गये?

﴾ 20 ﴿ तथा धरती को कि कैसे पसारी गयी?[1]
1. (17-20) इन आयतों में फिर विषय बदल कर एक प्रश्न किया जा रहा है कि जो क़ुर्आन की शिक्षा तथा प्रलोक की सूचना को नहीं मानते अपने सामने उन चीज़ों को नहीं देखते जो रात दिन उन के सामने आती रहती हैं, ऊँटों तथा पर्वतों और आकाश एवं धरती पर विचार क्यों नहीं करते कि क्या यह सब अपने आप पैदा हो गये हैं या इन का कोई रचयिता है? यह तो असंभव है कि रचना हो और रचयिता न हो। यदि मानते हैं किसी शक्ति ने इन को बनाया है जिस का कोई साझी नहीं तो उस के अकेले पूज्य होने और उस के फिर से पैदा करने की शक्ति और सामर्थ्य का क्यों इन्कार करते हैं? (तर्जुमानुल क़ुर्आन)

﴾ 21 ﴿ अतः आप शिक्षा (नसीह़त) दें कि आप शिक्षा देने वाले हैं।

﴾ 22 ﴿ आप उनपर अधिकारी नहीं हैं।

﴾ 23 ﴿ परन्तु, जो मुँह फेरेगा और नहीं मानेगा,

﴾ 24 ﴿ तो अल्लाह उसे भारी यातना देगा।

﴾ 25 ﴿ उन्हें हमारी ओर ही वापस आना है।

﴾ 26 ﴿ फिर हमें ही उनका ह़िसाब लेना है।[1]
1. (21-26) इन आयतों का भावार्थ यह है कि क़ुर्आन किसी को बलपूर्वक मनवाने के लिये नहीं है, और न नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह कर्तव्य है कि किसी को बलपूर्वक मनवायें। आप जिस से डरा रहे हैं यह मानें या न मानें वह खुली बात है। फिर भी जो नहीं सुनते उन को अल्लाह ही समझेगा। यह और इस जैसी क़ुर्आन की अनेक आयतें इस आरोप का खण्डन करती हैं के इस्लाम ने अपने मनवाने के लिये अस्त्र शस्त्र का प्रयोग किया है।

कुरान - कुरान की मान्यताएँ (Quran in Hindi)

इस आरंभिक विचार के बाद यह समझ लें कि क़ुरान के अनुसार इस धरती पर मनुष्य की क्या स्थिति है?‎ अल्लाह ने इस धरती पर मनुष्य को अपना प...

Powered by Blogger.